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Motiyabind: मोतियाबिंद एक ऐसी समस्या है जो बढ़ती उम्र के साथ खुद ही आंखों में अपनी जगह बना लेता है, इस स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को दूर या पास की चीजें कम दिखाई देने लगती हैं, ड्राइव करते समय काफी दिक्कतें आती हैं, इतना ही नहीं वह व्यक्ति सामने बैठे किसी भी व्यक्ति के चेहरे के भाव को भी नहीं समझ पाता है। अगर आपके साथ भी ये सारी दिक्कतें हो रही हैं तो समझ जाइए कि आप मोतियाबिंद के शिकार हो गए हैं।
अधिकांश मामलों में मोतियाबिंद बढ़ती उम्र के कारण होता है। एक रिसर्च के अनुसार भारत में करीब 90 लाख से अधिक लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं जिसके तमाम कारण हैं-
जैसा कि हमने ऊपर बताया उम्र बढ़ना मोतियाबिंद के सबसे आम कारणों में से एक है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है आपके आंखों के लेंस खराब होने लगते हैं उसमें एक परत सी चढ़ने लगती है जिसकी वजह से पारदर्शिता में कमी आ जाती है।
मोतियाबिंद एक अनुवांशिक बीमारी भी है। अगर आपके परिवार में पहले किसी को यह बीमारी हुई है तो बिना कारण ही यह बीमारी आपको भी हो सकती है।
आंखों की समस्या डायबिटीज के कारण भी हो जाती है। अगर आप मधुमेह के रोगी हैं और आपने इसका सही इलाज नहीं करवाया है तो भी आप मोतियाबिंद के शिकार आसानी से हो सकते हैं।
अगर आपने पहले कभी आंखों की सर्जरी करवाई है या आंखों में कोई पुरानी चोट लगी है तो उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह मोतियाबिंद का रूप ले सकता है।
लंबे समय तक स्टेरॉयड का सेवन करने से भी व्यक्ति मोतियाबिंद की चपेट में आ सकता है।
मोतियाबिंद के सबसे आम लक्षणों (cataracts symptoms) में से एक है नज़र कमजोर होना, लेकिन इसके अलावा भी मोतियाबिंद के कई लक्षण हैं जैसे-
कुछ लोगों का कहना है कि मोतियाबिंद को घरेलू उपाय से ठीक किया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं है। आप घरेलू उपचार से केवल मोतियाबिंद से बच सकते हैं, मोतियाबिंद हो जाने के बाद इसका इलाज घरेलू तरीके से कर पाना काफी असंभव है।
मोतियाबिंद एक ऐसी परत होती है जो आंखों को पूरी तरह से कवर कर लेती है जिसके बाद पीड़ित व्यक्ति देखने में असमर्थ हो जाता है, इस स्थिति में डॉक्टर सर्जरी करवाने की सलाह देते हैं। अगर आप मोतियाबिंद के शिकार हैं तो नीचे दिए गए ऑपरेशन से इसे ठीक किया जा सकता है-
लेंस के मोतियाबिंद को माइक्रो द्वारा हटाया जाता है, इसमें कॉर्नर चीरा लगाया जाता है जो काफी माइनर सा होता है। यह प्रक्रिया काफी तेज गति से होती है और उसमें दर्द भी काफी कम होता है
इस सर्जरी में 2.8 मिमी का एक छोटा सा कॉर्नियल चीरा लगाया जाता है और अल्ट्रासोनिक एमल्सिफिकेशन जांच से मोतियाबिंद को हटाया जाता है।
मोतियाबिंद से जुड़े कई सवाल हैं जो अक्सर लोगों के मन में आते हैं जिसे लोग डॉक्टर से जानना चाहते हैं, इनमें से ही कुछ सवाल नीचे दिए गए इसके जवाब आप पढ़ सकते हैं-
कई बार लोगों को ऐसा लगता है कि सर्जरी करवाने से पहले मोतियाबिंद को पूरी तरीके से पनपने देना चाहिए जिससे यह सर्जरी के बाद जड़ से खत्म हो जाए, लेकिन यह धारणा बिल्कुल गलत है। जब भी आपको लगे कि आपकी आंखें अच्छी तरीके से नहीं देख पा रही हैं और लोगों की भावनाओं को नहीं समझ पा रही हैं तो तुरंत इसका इलाज करवाना चाहिए।
मोतियाबिंद का ऑपरेशन हल्का ऑपरेशन माना जाता है। आमतौर पर यह 15 से 20 मिनट का ही काम होता है। अगर आप अस्पताल में एंट्री से लेकर डिस्चार्ज तक का समय देखें तो यह करीब 2 से 3 घंटे का समय लेता है।
आप घरेलू उपचार की मदद से मोतियाबिंद होने से बच सकते हैं लेकिन अगर आपकी आंखों में मोतियाबिंद पूरी तरीके से छा गया है तो आप इसे घरेलू उपचार से ठीक नहीं कर सकते हैं, इसके लिए ऑपरेशन ही एक अच्छा विकल्प है।
नहीं! ऑपरेशन के दौरान आपको कुछ भी महसूस नहीं होगा, हो सकता है ऑपरेशन के बाद आपको आंखों पर थोड़ा भारी पर लगे लेकिन अगर आपकी आंखों से पानी आ रहा है तो इस स्थिति में डॉक्टर से सलाह लें।
आमतौर पर मोतियाबिंद 60 की उम्र के बाद ही होता है, लेकिन कुछ गम्भीर रोग या चोट के कारण ये बीमारी पहले भी हो सकती है।
उजाला सिग्नस हेल्थकेयर ग्रुप के 13 अस्पताल हैं जो रेवाड़ी, सोनीपत, पानीपत, कुरक्षेत्र, कैथल, बहादुरगढ़, करनाल, कानपुर, वाराणसी, काशीपुर, दिल्ली के नांगलोई, दिल्ली के रामा विहार में स्थित हैं। किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज करवाने के लिए आप अपने नज़दीकी उजाला सिग्नस अस्पताल में अपॉइंटमेंट बुक करवा सकते हैं। इसके अलावा, फ़ोन के ज़रिये मुफ्त परामर्श लेने के लिए आप 9146691466 पर मिस्ड कॉल दे सकते हैं।
One of the hallmarks of our facility is the inclusion of 6 state-of-the-art critical care units.
These units are dedicated to ensuring that patients facing severe and life-threatening conditions receive immediate and specialized care.
Additionally, our 8-bed Intensive Care Unit (ICU) is equipped with the latest technology to monitor and manage patients who require intensive medical attention.
Patients can also benefit from the spacious general beds while they recover.
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