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किडनी शरीर के सबसे जरूरी अंगों में से एक है अगर किडनी ना हो तो व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता है ऐसे में कई बार जीवनशैली में परिवर्तन और अनुवांशिकता के कारण कुछ लोगों की किडनियां खराब हो जाती हैं जिसे हम किडनी फेल होना कहते हैं, ऐसी स्थिति में किडनी को जीवित रखने के लिए डायलिसिस का सहारा लिया जाता है। डायलिसिस के द्वारा किडनी के खराबी के कारण शरीर में जमा हुए खराब उत्पादों और अधिक पानी को बाहर निकाला जाता है।
किडनी मरीजों के लिए डायलिसिस (dialysis treatment) एक जीवन रक्षक के रूप में काम करता है, जिस व्यक्ति की दोनों किडनियां फेल हो जाती हैं और व्यक्ति जीवित रहने लायक नहीं बचता है तो इस स्थिति में डॉक्टर डायलिसिस कराने की सलाह देते हैं।
एक स्वस्थ किडनी शरीर से सारे खराब तत्वों को फ़िल्टर करके बाहर निकालती है, लेकिन जब किसी व्यक्ति की किडनी ठीक ढंग से काम करना बंद कर देती है तो इसे वापस काम में लाने के लिए डायलिसिस किया जाता है। डायलिसिस की प्रक्रिया (dialysis process) से शरीर में मौजूद वेस्ट नमक के साथ-साथ अधिक पानी को (how is dialysis done) भी निकाल लिया जाता है।
एक स्वस्थ किडनी पूरे दिन में करीब 1500 लीटर ब्लड को साफ़ करती है, और जब किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती है तब ब्लड में वेस्ट जमा होने लगता है और इससे किडनी पर असर पड़ता है।
जब किसी व्यक्ति की दोनों किडनी फेल हो जाती है और उसके कार्य करने की क्षमता केवल 10 से 15% रह जाती है तो इस स्थिति में किडनी डिजीज हो जाता है इस स्थिति में क्रीएटिनिन और अन्य नाइट्रोजन अपशिष्ट उत्पादों के रूप में शरीर में जमा होने लगता है जिसके कारण मतली उल्टी, थकान सूजन और सांस फूलने जैसे समस्याएं होने लगती हैं इसे यूरीमिया कहते हैं। इस स्थिति में डॉक्टर और विशेषज्ञ किडनी डायलिसिस की सलाह देते हैं, जिससे किडनी कुछ प्रतिशत काम करने लगे और मरीज जिंदा रह सके।
लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि किडनी डायलिसिस के बाद (dialysis process time) भी मरीज स्वस्थ नहीं होता है बल्कि उसके स्वास्थ्य को ठीक रखने और किडनी ठीक ढंग से काम कर सके इसके लिए नियमित रूप से डायलिसिस करवाना पड़ता है कुछ मरीजों को हफ्ते में एक बार तो कुछ मरीजों को हफ्ते में दो या तीन बार भी डायलिसिस करवाना पड़ता है। लेकिन एक्यूट किडनी फेल्योर के मरीजों में सिर्फ थोड़े समय के लिए ही डायलिसिस कराना होता है कुछ दिन डायलिसिस कराने के बाद एक्यूट किडनी फेल्योर के मरीजों की किडनी दोबारा काम करने लगती है।
मुख्यरूप से डायलिसिस की प्रक्रिया को दो भागों में बाँटा गया है। और वो है हीमोडायलिसिस (Hemodialysis) और पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis)
वैसे तो किडनी डायलिसिस को दो भागों में बंटा गया है लेकिन हीमोडायलिसिस को डायलिसिस का सबसे आसान रूप माना जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा बहुत सरल तरीके से शरीर के भीतर मौजूद खराब रक्त को फिल्टर करके निकाला जाता है और नकली किडनी द्वारा रक्त को वापस साफ करके शरीर में पहुंचाया जाता है। हीमोडायलिसिस करते समय शरीर से करीब 200 से 400 मिली प्रतिमिनट के हिसाब से रक्त बाहर निकाला जाता है।
मरीज को हीमोडायलिसिस एक सप्ताह में करीब तीन बार करवाना होता है, जिसमें एक बार में लगभग चार घण्टे का टाइम लगता है। इसके अलावा आपके शरीर में कितने बेकार पदार्थ हैं और आपका शरीर कितना सहने में सक्षम है ये देखते हुए डायलिसिस की समय सीमा बढ़ाई और घटाई जाती है।
पेरिटोनियल डायलिसिस में डॉक्टरर्स किडनी मरीज के पेट के निचले हिस्से से एक नलिका डालते हैं जो किडनी तक पहुंचती है, इस प्रक्रिया में कैथेटर मरीज के रक्त को एक झिल्ली के सहारे से साफ करने में मदद करता है। इसके अलावा एक पदार्थ जिसे डायलीसेट कहते हैं उसे भी पेट के भीतर डाला जाता है और ये कुछ देर तक पेट में ही रहता है। ये पदार्थ पेट और किडनी के आसपास मौजूद बेकार तत्वों को खुद सोख लेता है जिसके बाद उसे बाहर निकाल लिया जाता है।
पेरिटोनियल डायलिसिस के लिए बड़ी बड़ी मशीनों की जरूरत नहीं पड़ती है इसे डॉक्टरर्स खुद करते हैं, खासकर ये ट्रीटमेंट उन मरीजों के लिए होता है जो आमतौर पर बाहर आने जाने में सक्षम नहीं होते हैं।
One of the hallmarks of our facility is the inclusion of 6 state-of-the-art critical care units.
These units are dedicated to ensuring that patients facing severe and life-threatening conditions receive immediate and specialized care.
Additionally, our 8-bed Intensive Care Unit (ICU) is equipped with the latest technology to monitor and manage patients who require intensive medical attention.
Patients can also benefit from the spacious general beds while they recover.
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